नई दिल्ली46 मिनट पहले
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रुपया अपने रिकॉर्ड ऑल टाइम लो पर पहुंच गया है। इसमें अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 11 पैसे की गिरावट देखने को मिली और यह 84.09 रुपए प्रति डॉलर के अब तक के सबसे निचले स्तर पर बंद हुआ। इससे पहले 8 अगस्त 2024 को डॉलर के मुकाबले रुपया 83.99 के अपने सबसे निचले स्तर पर बंद हुआ था।
न्यूज एजेंसी रॉयर्स के मुताबिक, रुपए में इस गिरावट की वजह हाल ही में ग्लोबल मार्केट में क्रूड ऑइल की कीमतों में बढ़ोतरी और भारतीय शेयर मार्केट में विदेशी निवेशकों के जरिए की जा रही बिकवाली शामिल है। इसके अलावा, इजराइल की ईरान और लेबनान के साथ जंग की खबरों के कारण भी रुपए पर नेगेटिव असर पड़ा है।
इंट्रा डे में भी रुपया सबसे निचले स्तर पर पहुंचा इंट्रा-डे में रुपया 84.11 के निचले स्तर पर पहुंच गया, जो डॉलर के मुकाबले सबसे निचला स्तर है। न्यूज एजेंसी रॉयटर की एक रिपोर्ट के मुताबिक, शुक्रवार को रुपया डॉलर के मुकाबले 83.98 रुपए के स्तर पर खुला और एक समय 84.11 के निचले स्तर पर पहुंच गया था। मार्केट एक्सपर्ट्स का मानना है कि रुपया आने वाले दिनों में 84.25 के सबसे निचले स्तर पर पहुंच सकता है।
इंपोर्ट करना होगा महंगा रुपए में गिरावट का मतलब है कि भारत के लिए चीजों का इंपोर्ट महंगा होना है। इसके अलावा विदेश में घूमना और पढ़ना भी महंगा हो गया है। मान लीजिए कि जब डॉलर के मुकाबले रुपए की वैल्यू 50 थी तब अमेरिका में भारतीय छात्रों को 50 रुपए में 1 डॉलर मिल जाते थे। अब 1 डॉलर के लिए छात्रों को 83.40 रुपए खर्च करने पड़ेंगे। इससे फीस से लेकर रहना और खाना और अन्य चीजें महंगी हो जाएंगी।
करेंसी की कीमत कैसे तय होती है? डॉलर की तुलना में किसी भी अन्य करेंसी की वैल्यू घटे तो उसे मुद्रा का गिरना, टूटना, कमजोर होना कहते हैं। अंग्रेजी में करेंसी डेप्रिशिएशन। हर देश के पास फॉरेन करेंसी रिजर्व होता है, जिससे वह इंटरनेशनल ट्रांजैक्शन करता है। फॉरेन रिजर्व के घटने और बढ़ने का असर करेंसी की कीमत पर दिखता है।
अगर भारत के फॉरेन रिजर्व में डॉलर, अमेरिका के रुपयों के भंडार के बराबर होगा तो रुपए की कीमत स्थिर रहेगी। हमारे पास डॉलर घटे तो रुपया कमजोर होगा, बढ़े तो रुपया मजबूत होगा। इसे फ्लोटिंग रेट सिस्टम कहते हैं।