गुरु को नमन करने का पर्व गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima 2024) आज मनाया जा रहा है। गुरु की हर आज्ञा का पालन करना हर शिष्य का कर्तव्य है। गुरु अपनी दक्षिणा में शिष्य से जो मांगे, उसे लाकर देना भी शिष्य का कर्तव्य है। हम इस खबर में ऐसे शिष्यों की कहानी बता रहे हैं, जिन्होंने गुरु दक्षिणा देने के लिए असंभव को भी संभव बना दिया।
By Prashant Pandey
Publish Date: Sun, 21 Jul 2024 06:00:00 AM (IST)
Updated Date: Sun, 21 Jul 2024 07:22:03 AM (IST)
HighLights
- भगवान श्रीकृष्ण यमराज से युद्ध कर गुरु सांदीपनि के पुत्र पुनर्दत्त को ले आए।
- एकलव्य ने गुरु द्रोणाचार्य के गुरु दक्षिणा मांगते ही काटकर दे दिया था अंगूठा।
- शिष्य सुतीक्ष्ण अपने गुरु महर्षि अगस्त्य के आश्रम में राम-सीता को ले आए थे।
Guru Dakshina: धर्म डेस्क, इंदौर। गुरु द्वारा दिए गए ज्ञान के बिना हमारा जीवन अधूरा है। हिंदू धर्म में गुरु का स्थान सबसे ऊपर बताया गया है। हर शिष्य का यह कर्तव्य है कि वो अपने गुरु की हर बात माने और उन्हें गुरु दक्षिणा दे। माना जाता है कि गुरु द्वारा दी गई विद्या का फल गुरु दक्षिणा देने के बाद ही मिलता है।
चाहे भगवान कृष्ण हो या एकलव्य हर ने अपने गुरुओं की आज्ञा का पालन करते हुए उन्हें गुरु दक्षिणा दी थी। यहां हम ऐसे ही शिष्यों की कहानी बता रहे हैं, जिनकी गुरु दक्षिणा की मिसाल आज भी दी जाती है…
सुतीक्ष्ण गुरु दक्षिणा में ले आए राम-सीता को
शिष्य सुतीक्ष्ण ने महर्षि अगस्त्य के आश्रम में रहकर उनसे अलग-अलग शास्त्रों की विद्या पाई थी। इसके बाद उन्होंने गुरु से गुरु दक्षिणा मांगने के लिए कहा। इस पर गुरु अगस्त्य ने उनसे राम-सीता को उनके आश्रम में लाने के लिए कहा।
गुरु की आज्ञा पाकर सुतीक्ष्ण जंगल में जाकर तपस्या करने लगे। उनकी तपस्या और गुरु भक्ति देख राम-सीता प्रसन्न हुए और वहां प्रकट हो गए। इसके बाद सुतीक्ष्ण ने उनसे गुरु के आश्रम चलने को कहा। राम-सीता उसके साथ महर्षि अगस्त्य के आश्रम पहुंचे। शिष्य सुतीक्ष्ण के साथ राम-सीता को देख गुरु प्रसन्न हो गए।
यमराज से युद्ध कर गुरु के पुत्र को ले आए थे श्रीकृष्ण
गुरु सांदीपनि से शिक्षा ग्रहण करने भगवान कृष्ण उज्जैन में उनके आश्रम आए थे। यहां उन्होंने गुरु सांदीपनि से 64 दिनों में 64 कलाओं का ज्ञान प्राप्त किया था। शिक्षा ग्रहण करने के बाद श्रीकृष्ण ने सांदीपनि से गुरु दक्षिणा मांगने के लिए कहा। सांदीपनि को इस बात का ज्ञान था कि भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया है।
गुरु दक्षिणा मांगने से इनकार करते हुए सांदीपनि ने कहा कि ‘मैंने आपको क्या सिखाया है, आप तो स्वयं भगवान हैं।’ इसके बाद श्रीकृष्ण ने गुरुमाता सुषुश्रा को यह सारी बात बताई और उनसे कुछ गुरु के बदले गुरु दक्षिणा मांगने का आग्रह किया।
गुरुमाता ने श्रीकृष्ण से बेटे को लाने के लिए कहा
गुरुमाता ने श्रीकृष्ण से अपने पुत्र पुनर्दत्त को वापस लाने के लिए कहा। इसके बाद वे उस समुद्र तट पर पहुंचे जहां से गुरुपुत्र पुनर्दत्त गायब हुए थे। उन्होंने समुद्र से कहा कि वो पुनर्दत्त को वापस लौटा दें। यहां उन्हें पता चला कि उसे एक राक्षस ने खा लिया था और उसकी आत्मा यमलोक में है।
यमलोक पहुंच गए भगवान कृष्ण
श्रीकृष्ण गुरुपुत्र को वापस लाने यमलोक जा पहुंचे। यहां उन्होंने यमराज से पुनर्दत्त को वापस धरती पर भेजने को कहा। यमराज को इस बात का ज्ञान नहीं था कि श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के अवतार हैं। इसके बाद दोनों के बीच युद्ध हुआ और यमराज ने हार मानते हुए पुनर्दत्त को उन्हें लौटा दिया।
श्रीकृष्ण यमलोक से गुरुपुत्र पुनर्दत्त को लेकर वापस सांदीपनि के आश्रम पहुंचे और गुरुमाता सुषुश्रा को उनका पुत्र सौंप दिया। गुरुमाता अपने पुत्र को पाकर भावुक हो गईं और श्रीकृष्ण को आशीर्वाद दिया।
एकलव्य ने गुरु द्रोणाचार्य को काटकर दे दिया था अपना अंगूठा
एकलव्य गुरु द्रोणाचार्य से धनुष चलाने की विद्या सीखना चाहते थे। द्रोणाचार्य ने उन्हें अपना शिष्य बनाने से इनकार कर दिया। एकलव्य तो यह ठान चुके थे कि उन्हें द्रोणाचार्य से ही धनुर्विद्या सीखना है। इसके बाद उन्होंने द्रोणाचार्य की एक मूर्ति बनाई और उनके सामने ही धनुष चलाना सीखना शुरू किया।
गुरु की मूर्ति के सामने अभ्यास कर धनुष चलाने में हुए पारंगत
उधर गुरु द्रोणाचार्य अपने शिष्य अर्जुन को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ योद्धा बनाना चाहते थे। गुरु की मूर्ति के सामने अभ्यास करते हुए एकलव्य धनुष चलाने में पारंगत हो गया थे। एक दिन अभ्यास के दौरान जब एक कुत्ता भौंकने लगा, तो एकलव्य ने बाणों से उसका मुंह भर दिया। कुत्ते के मुंह से एक बूंद भी खून नहीं निकला और उसने भौंकना बंद कर दिया।
बाणों से भरा कुत्ते का मुंह देख द्रोणाचार्य भी आश्चर्यचकित रह गए
गुरु द्रोणाचार्य ने जब उस कुत्ते को देखा, तो वो आश्चर्यचकित हो गए। इसके बाद वे उस धनुषधारी की खोज करने लगे, जिसने कुत्ते के मुंह को बाणों से भर दिया। उन्हें पता चला कि यह एकलव्य ने किया है। इसके बाद वे उससे मिलने पहुंचे, तो देखा कि हूबहू उनके जैसी दिखने वाली मूर्ति के सामने वो अभ्यास कर रहा है।
जब द्रोणाचार्य ने मांगी गुरु दक्षिणा
एकलव्य ने गुरु द्रोणाचार्य को देख झुककर प्रणाम किया और यह बताया कि वो उनकी ही मूर्ति के सामने अभ्यास कर धनुष चलाने में पारंगत हो गया है। गुरु द्रोणाचार्य तो अर्जुन को सर्वश्रेष्ठ योद्धा बनाना चाहते थे।
ऐसे में उन्होंने गुरु दक्षिणा में एकलव्य से उसका अंगूठा मांग लिया। जिससे वो बाण ना चला सके। एकलव्य ने गुरु की बात सुन जरा भी देर नहीं की और अपना अंगूठा काटकर उन्हें सौंप दिया।