जिस तिथि का किसी सूर्योदय के साथ संबंध नहीं होता है, उसकी क्षय संज्ञा हो जाती है। उसे क्षय तिथि कहते हैं। इस नियम के अनुसार दो तिथियों का एक पक्ष के अंतर्गत सूर्योदय से संबंध नहीं बने, तो उसे विश्व घस्र पक्ष कहा जाता है। यह अशुभ फल देने वाला माना जाता है।
By Ekta Sharma
Publish Date: Sat, 22 Jun 2024 03:19:09 PM (IST)
Updated Date: Sat, 22 Jun 2024 04:14:40 PM (IST)
HighLights
- कृष्ण पक्ष में द्वितीया और त्रयोदशी का क्षय हो रहा है।
- यह अशुभ सूचक होकर उत्पात की श्रेणी में आता है।
- महाभारत युद्ध के पहले 13 दिन के पक्ष में यह काल आया था।
धर्म डेस्क, इंदौर। Ashadha Month 2024: इस साल आषाढ़ मास साधारण नहीं बल्कि अभूतपूर्व होने जा रहा है। 23 जून से आरंभ हो रहे इस मास में एक ऐसा योग बनने जा रहा है जो कि इससे पहले महाभारत काल में बना था। यह बहुत दुर्लभ है। महाभारत युद्ध के पूर्व 13 दिन का पक्ष निर्मित हुआ था।
ज्योतिष शास्त्र में इसे दुर्योग काल माना जाता है। महाभारत काल का संयोग बनने के कारण प्राकृतिक प्रकोप बढ़ने की आशंका होती है। हिंदू पंचांग के अनुसार, संवत 2081 में आषाढ़ मास 23 जून से 21 जुलाई तक रहेगा।
इस दौरान कृष्ण पक्ष केवल 13 दिन का रहेगा। आषाढ़ कृष्ण पक्ष की शुरुआत 23 जून को होगी और समापन पांच जुलाई को होगा। इस कृष्ण पक्ष में दो तिथियों द्वितीया और त्रयोदशी का क्षय हो रहा है। इस कारण यह कृष्ण पक्ष केवल 13 दिनों का रहेगा।
महाभारत युद्ध के पहले भी था 13 दिन का पक्ष
शुक्ल पक्ष 6 जुलाई से शुरू हो रहा है जो 21 जुलाई तक चलेगा। ऐसा संयोग कई शताब्दियों में बनता है और इसे विश्व घस्त्र पक्ष कहते हैं। ज्योतिषाचार्य पंडित सौरभ दुबे के अनुसार, यह बहुत बड़ा दुर्योग है।
महाभारत युद्ध के पहले 13 दिन के पक्ष में यह दुर्योग काल आया था। उस समय बड़ी जनधन हानि हुई थी। घनघोर युद्ध था। इस साल दुर्योग काल के चलते प्रकृति का प्रकोप बढ़ने की आशंका बन रही है। भारतीय काल गणना में सौर, चांद्र, सावन तथा नक्षत्र आदि अनेक कालों का मान किया जाता है।
कालयोग कहलाती है यह अवधि
सनातन धर्म के ग्रंथों तथा ज्योतिष शास्त्र में 13 दिवसीय पक्ष को विश्वघस्त्र पक्ष का नाम देकर इसे विश्व-शांति को भंग करने वाला माना गया है। ऐसा माना जाता है कि इस पक्ष का असर तेरह पक्ष और तेरह मास के अंदर अपना प्रभाव जरूर देता है। इसको धर्म एवं ज्योतिष के ग्रंथों में ‘विश्वघस्त्र पक्ष’ कहा गया है।
धर्मग्रंथों में विश्वघस्त्र पक्ष को कालयोग का नाम भी दिया गया है। कालचक्र के कारण जब तेरह दिन का पक्ष आता है, तब विश्व में संहार की स्थिति उत्पन्न होती है।
तेरह दिवसीय विश्वघस्त्र पक्ष असाध्य रोगों का उत्पादक, उपद्रव पैदा करने वाला, हिंसा और रक्तपात बढ़ाने वाला, राष्ट्रों के मध्य युद्ध की स्थिति बनाने वाला, प्राकृतिक प्रकोप-दुर्घटनावश जन-धन की भीषण हानि करने वाला, समाज में अशांति एवं अराजकता के वातावरण का सृजनकर्ता पाया गया है।
नरमुंडों की माला धारण करती हैं महाकाली
प्राचीन ग्रंथों में इसे अमंगलदायक मानकर यहां तक कहा गया है कि जब कभी तेरह दिवसीय पक्ष आता है, तब संसार में संहार होता है और महाकाली नरमुंडों की माला धारण करती हैं। 13 दिन का पक्ष उत्पन्न होने की स्थिति में प्रजा के लिए महाविनाश की स्थिति उत्पन्न होती है। यह कालयोग हजारों वर्ष में एक बार आता है।
महाभारत काल में भी इस तरह की स्थिति उत्पन्न हुई थी। 13 दिन के इसी पक्ष में चन्द्र और सूर्य के 2 ग्रहण भी हुए थे। इस स्थिति को ऋषियों ने महा उत्पात की श्रेणी में रखा है। इस वर्ष संवत 2081 के आषाढ़ कृष्ण पक्ष में रविवार, 23 जून 2024 से शुक्रवार, पांच जुलाई 2024 तक 13 दिनों का पक्ष रहेगा।
मांगलिक कार्य होते हैं वर्जित
आषाढ़ कृष्ण पक्ष में द्वितीया और त्रयोदशी का क्षय होकर 13 दिन का पक्ष उपस्थित हो रहा है। जो कि कुछ अशुभ सूचक होकर उत्पात की श्रेणी में आता है। यह महाभारत में वर्णित 13 दिन के पक्ष के तुल्य नहीं है। यह महाउत्पात की श्रेणी में नहीं आकर सामान्य विकृति की श्रेणी में आएगा।
जो कि गणना में अनेक बार दिखता रहता है। क्षय पक्ष में मुंडन, विवाह, यज्ञोपवीत, गृहप्रवेश, वास्तुकर्म आदि शुभ एवं मांगलिक कार्य वर्जित होते है। ऐसा दुर्योग होने से अतिवृष्टि, अनावृष्टि, राजसत्ता का परिवर्तन, विप्लव, वर्ग भेद आदि उपद्रव होने की संभावना पूरे साल बनी रहती है।
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