यूपी सरकार का खास प्लान: 17 लाख किसानों को होगा बड़ा फायदा | योगी सरकार हर जिले में मुफ्त देगी बायो डीकंपोजर
यूपी के 17 लाख किसानों को योगी सरकार बड़ा फायदा देने जा रही है। यूपी सरकार ने धान की पराली को बायोकंपोस्ट में बदलने के लिए बायो डीकंपोजर किसानों को उपलब्ध कराने का फैसला किया है। सरकार पराली के प्रबंधन को लेकर बहुत गंभीर है और इसीलिये कंप्रेस्ड बायो गैस प्लांट को सरकार ने तय किया है कि वह धान की पराली को बायोकंपोस्ट में बदलने के लिए किसानों को बायो डीकंपोजर उपलब्ध कराएगी। इसमें जागरूकता और अन्य अभियान भी जारी रहेंगे।
सीबीजी प्लांट में पराली द्वारा ईंधन तैयार किए जा रहे हैं और ईंधन बनाने के लिए कच्चे माल के रूप में किसानों से उनकी पराली खरीदी जा रही है। उत्तर प्रदेश में दस सीबीजी प्लांट लग चुके हैं। आगामी दिनों में प्रदेश में इनकी संख्या बढ़कर सौ से ज्यादा हो जाएगी। इसी माह की आठ तारीख को केंद्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने इसपर घोषणा भी कर चुके हैं। खरीफ और रबी की प्रमुख फसल धान और गेहूं की कटाई के बाद अगली फसल की बुवाई के लिए इन फसलों के अवशेष जलाना एक आम है।
पराली जलाने के क्या हैं दुष्प्रभाव
पराली जलाने से पहले एक बार जरूर सोंच लें कि आप सिर्फ खेत ही नहीं बल्कि उसके साथ अपनी किस्मत पर भी पानी फेर रहे हैं। पराली जलाने से बड़ी संख्या में जहरीले प्रदूषक वातावरण दूषित करते हैं। पराली के साथ आवश्यक पोषक तत्व नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटाश के साथ अरबों की संख्या में उपस्थित भूमि में आवश्यक बैक्टीरिया और फफूंद भी जलकर राख हो जाते हैं।
सरकार द्वारा उठाए गये कदम
सरकार ने उत्तर प्रदेश राज्य में जैव ऊर्जा नीति आधारित बायो सीएनजी, सीबीजी को कई प्रकार के प्रोत्साहन का प्रावधान किया गया है। सरकार हर जिले में सीबीजी प्लांट लगवाने के लिये हर संभव प्रयास कर रही है। इसी कड़ी में आठ मार्च को गोरखपुर के धुरियापार में इंडियन ऑयल के सीबीजी प्लांट का शुभारंभ हो चुका है। सरकार हर संभव तरीकों से पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण की समस्या का निराकरण किया जा रहा है।
किसानों पराली से होंगे फायदे
फसल अवशेषों से ढकी मिट्टी में नमी उपस्थित होने से इसमें सूक्ष्मजीवों की सक्रियता बढ़ जाती है, जो अगली फसल के लिए सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी नही होने देती हैं।
अवशेषों से ढकी भूमि की नमी संरक्षित होने से के मिट्टी में जल धारण करने की क्षमता भी बढ़ती है। इससे सिंचाई में कम पानी लगने से इसकी लागत घटती है।
धान की पराली को मिट्टी में मिलाकर कार्बनिक खाद के रूप में उपयोग कर सकते है और इससे पर्यावरण प्रदूषण को कम करने में सार्थक सहयोग कर सकते है।